कुछ ऐसा रिश्ता है ए दिल तुझसे
जो समझाये नही समझता
मैने आगर कही दूर जाना चाहा
तू है की बस लोगो में ही उलझा रहता
क्यूँ तुझे अकेले रेहने की आदत नही पडती
क्यूँ तू औरों की फिक्र में डुबा रहता है
क्यूँ तू औरों के दर्द सवारने में लगा रहता है
जब खुद्द से खुद्द ही की नही संभलती
खुद्द के लिये कुछ देर जी
खुद्द से कर थोडी दोस्ती
खुद्द ही बन खुद्द का हमसफर
लिख एक दास्तान नई
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