Blog Marathon - Post 18 - रूबरू
तेरा ज़िक्र हो या न हो
बस वो तुझे याद करने का बहाना ढूढ़ना
तेरे चेहरे पर वो मुस्कान का खिलना
तुम्हारा ऐसे ही अचानक रूबरू आना
सूरज की पहेली किरन जैसी तुम्हारी भोली सूरत
बालों का वो हवा के साथ खेलते रहना
तुम्हारी आँखें और उफ़ वो पलकों का उठना
और मुझे देखखर गिरना और आहिस्ता से निकल जाना
तुम सपना हो या हकीकत
सोचता हूँ अक्सर
तुम्हें पाने की है चाहत
कब होगी मंजूर मेरी दुआ
बस वो तुझे याद करने का बहाना ढूढ़ना
तेरे चेहरे पर वो मुस्कान का खिलना
तुम्हारा ऐसे ही अचानक रूबरू आना
सूरज की पहेली किरन जैसी तुम्हारी भोली सूरत
बालों का वो हवा के साथ खेलते रहना
तुम्हारी आँखें और उफ़ वो पलकों का उठना
और मुझे देखखर गिरना और आहिस्ता से निकल जाना
तुम सपना हो या हकीकत
सोचता हूँ अक्सर
तुम्हें पाने की है चाहत
कब होगी मंजूर मेरी दुआ
Comments
Post a Comment