Blog Marathon - Post 21 - उम्मीद

रोज गुजरता हूँ
तेरी गली से होकर
इस उम्मीद मैं
की तेरा दीदार हो जाए
इतने सालो से 
जो ज़िन्दगी बंजर हो गयी है
उसमे थोडीसी जान
छिड़क जाए

तुम्हारी हंसी,
तुम्हारी आँखों में वो ख़ुशी
तुम्हारी खुसबू
और तुम्हारी वो चुपी
अक्सर याद आती है
तुम्हारी आँखों की नमी
मेरी आँखों में ही
ठहर जाती है 

जानता हूँ के
तुम नहीं हो
कही नहीं हो
कम्भख्त ये दिल
हर बार कहता है
की तुम यहीं हो
यहीं कहीं हो



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