कितना बदल गया इंसान
निकलते तो हैं
साथ ही एक राह पर
कोई आगे निकल जाते हैं
कोई पिछे छूटकर
एक ही घर में रहकर भी
मूलाकात नहीं होती
काम में इतने डूब गए अब की
आंखों से आंखों की बात नहीं होती
लेपटोप, मोबाइल बन गए हैं
अब अच्छे साथी
इन्सान की इन्सान से
अब जान पहचान ही नहीं होती
कुछ दिनों में शायद
हम बोलना भूल जाएंगे
यंत्रों से बातें करते करते
जिना भूल जाएंगे
तब आएगी याद साथी की
और
इन्सान को इन्सान की किमत
तब ही पता चलेगी
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