11 November 2019

कितना बदल गया इंसान

निकलते तो हैं 
साथ ही एक राह पर
कोई आगे निकल जाते हैं
कोई पिछे छूटकर

एक ही घर में रहकर भी
मूलाकात नहीं होती
काम में इतने डूब गए अब की
आंखों से आंखों की बात नहीं होती

लेपटोप, मोबाइल बन गए हैं
अब अच्छे साथी
इन्सान की इन्सान से
अब जान पहचान ही नहीं होती

कुछ दिनों में शायद
हम बोलना भूल जाएंगे
यंत्रों से बातें करते करते
जिना भूल जाएंगे

तब आएगी याद साथी की
और
इन्सान को इन्सान की किमत
तब ही पता चलेगी

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